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वृ॒ष॒भं च॑र्षणी॒नां वि॒श्वरू॑प॒मदा॑भ्यम्। बृह॒स्पतिं॒ वरे॑ण्यम्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vṛṣabhaṁ carṣaṇīnāṁ viśvarūpam adābhyam | bṛhaspatiṁ vareṇyam ||

पद पाठ

वृ॒ष॒भम्। च॒र्ष॒णी॒नाम्। वि॒श्वऽरू॑पम्। अदा॑भ्यम्। बृह॒स्पति॑म्। वरे॑ण्यम्॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:62» मन्त्र:6 | अष्टक:3» अध्याय:4» वर्ग:10» मन्त्र:1 | मण्डल:3» अनुवाक:5» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (चर्षणीनाम्) विद्याप्रकाश से युक्त मनुष्यों के मध्य में (वृषभम्) अत्यन्त उत्तम (विश्वरूपम्) कर्मों वा वस्तुओं को रूपित करते हुए अर्थात् उनको यथार्थभाव से प्रकट करते हुए (अदाभ्यम्) नहीं हिंसा करने और सत्कार करने योग्य (वरेण्यम्) अत्यन्त श्रेष्ठ (बृहस्पतिम्) बड़ों के पालन करनेवाले राजा का आप लोग आदर करो, इससे पराक्रम की कामना करो ॥६॥
भावार्थभाषाः - जैसे राजा का सत्कार करके प्रजाजन ऐश्वर्य्यवान् होते हैं, वैसे ही राजा लोग प्रजाओं का सत्कार करके कीर्त्तियुक्त होते हैं ॥६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे मनुष्याश्चर्षणीनां मध्ये वृषभं विश्वरूपमदाभ्यं वरेण्यं बृहस्पतिं यूयं नमस्यताऽतः पराक्रमं कामयध्वम् ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (वृषभम्) अत्युत्तमम् (चर्षणीनाम्) विद्याप्रकाशवतां मनुष्याणां मध्ये (विश्वरूपम्) विश्वानि कर्माणि वस्तूनि वा रूपयन्तम् (अदाभ्यम्) अहिंसनीयं सत्कर्त्तव्यम् (बृहस्पतिम्) बृहतां पालकं राजानम् (वरेण्यम्) अतिश्रेष्ठम् ॥६॥
भावार्थभाषाः - यथा राजानं सत्कृत्य प्रजाजना ऐश्वर्यवन्तो जायन्ते तथैव राजानः प्रजाः सत्कृत्य कीर्त्तिमन्तो भवन्ति ॥६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जसे राजे लोकांचा सत्कार करून प्रजा ऐश्वर्यवान होते तसेच राजे लोक प्रजेचा सत्कार करून कीर्तिमान होतात. ॥ ६ ॥